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जानें थावे धाम से जुड़ी कुछ रोचक कहानी, जहां भक्त रहषु किया करते थे बाघों से खेती!


बाघों से खेती किया करता था यह भक्त,

पौराणिक कथा: बिहार का एक ऐसा स्थान जहां आज कलयुग में भी मां आदिशक्ति विराजमान है और अपने भक्तो की हर मनोकामना पूर्ण करती है, जी हा आज हम आप को इस शक्ति पीठ के बारे में बताने जा रहे है, जहां अपने भक्त की एक पुकार पर मां आदिशक्ति स्वयं चली आई, वह शक्ति पीठ है गोपालगंज जिला मुख्यालय से 6 किमी दूरी पर स्थित मां आदिशक्ति थावे धाम, हालाकि आपको बताते चले इस मंदिर का जिक्र कई पुराणों में भी किया गया है, हालाकि माँ शक्ति के अनेक नाम और रूप हैं भक्त उन्हें कई नामों से, कई रूपों में पूजते हैं, मां थावे वाली उनमें से एक हैं, पूरे भारत में 52 "शक्तिपीठ" हैं, यह स्थान भी "शक्तिपीठ" की तरह ही है, और मां थावे वाली और  रहषु भक्त की कथा भी बेहद ही रोचक है।


भक्त रहषु की पुकार पर मां ने दिया दर्शन!

दरअसल आपको बताते चले कि थावे दुर्गा मंदिर की स्थापना की कहानी काफी दिलचस्प है चेरो वंश के राजा मनन सिंह खुद को मां दुर्गा का बहुत बड़ा भक्त मानते थे, तभी अचानक राजा के राज्य में अकाल पड़ गया। उसी समय थावे में माता रानी का एक भक्त था, जिसका नाम रहषु का विरोध किया और उसे पाखंडी कहा और रहषु से अपनी मां को यहां बुलाने को कहा। इस पर रहषु ने राजा से कहा कि यदि मां यहां आईं तो राज्य को नष्ट कर देंगी, लेकिन राजा नहीं माना। रहषु भगत के आह्वान पर देवी मां कामाख्या से चलकर पटना और सारण के आमी होते हुए गोपालगंज के थावे पहुंचीं। 



राजा की सभी इमारतें ढह गईं। तभी राजा की मृत्यु हो गयी. थावे माँ भवानी का प्रसिद्ध प्रसाद है था और वह मां के अन्नय भक्त थे राजा के पूरे राज्य में अकाल पड़ने से हाहाकार मच गया था, खेत खिलिहान सभी सूखने लगे और प्रजा भूख प्यास से तड़प रही थी, लेकिन रहषु भक्त खेतों में धान की फसल लहलहा रही, बताया जाता है की एक दिन रात को रहषु भगत अपने खेतों में सो रहे थे तभी अचानक कुछ बाघ उनके खेतों में धान की दौरी कर थे, सबसे चौकाने की बात यह दौरी के दौरान एक भी चावल टूटा नही था, और यह सब नजारा गांव का एक व्यक्ति देख दंग रह गया, और उसने यह बात राजा मनन सिंह को जा कर बताया, लेकिन राजा को इस बात का विश्वास नही हुआ, और राजा ने रहषु का विरोध किया और उसे पाखंडी कहा और रहषु से अपनी मां को यहां बुलाने की जिद पर अड़ा रहा।



इस पर रहषु ने राजा से कहा कि यदि मां यहां आईं तो राज्य को नष्ट कर देंगी, लेकिन राजा मानने वाला नही था, रहषु भगत के आह्वान पर देवी मां कामाख्या से चलकर पटना और सारण के आमी होते हुए गोपालगंज के थावे पहुंचीं, और राज्य के बाहर खड़ी हो गई हरषु भगत ने राजा से एक बार फिर आग्रह किया की राजा मान जाइए अभी भी समय है मां आदिशक्ति राज्य के बाहर खड़ी है लेकिन राजा मनन सिंह तो अपने जिद पर अड़ा रहा, जिसके बाद रहशु भगत हार कर मां का आवाह्न किया और जैसे ही मां राज्य में प्रवेश किया वैसे ही पूरे राज्य में हाहाकार मच गया, और इमारतें गिरने लगी और मां ने भक्त रहषु के सिर से हाथ निकाल राजा को दिखाया जिसके बाद राजा समेत भक्त रहषु की मौत हो गई, और तभी से थावे माँ भवानी का यह प्रसिद्ध स्थान हो गया।


थावे धाम की एक और है मान्यता!

वही आपको बताते चले कि कुछ जानकार बताते हैं कि थावे धाम से जुड़ी एक और मान्यता है जब हथुआ के राजा युवराज शाही बहादुर ने वर्ष 1714 में थावे दुर्गा मंदिर की स्थापना उस समय की जब वे चंपारण के जमींदार काबुल मोहम्मद बड़हरिया से दसवीं बार लड़ाई हारने के बाद फौज सहित हथुआ वापस लौट रहे थे, इसी दौरान थावे जंगल मे एक विशाल वृक्ष के नीचे पड़ाव डाल कर आराम करने के समय उन्हें अचानक स्वप्न में मां दुर्गा दिखीं, स्वप्न में आये तथ्यों के अनुरूप राजा ने काबुल मोहम्मद बड़हरिया पर आक्रमण कर विजय हासिल की और कल्याणपुर, हुसेपुर, सेलारी, भेलारी, तुरकहा और भुरकाहा को अपने राज के अधीन कर लिया, विजय हासिल करने के बाद उस वृक्ष के चार कदम उत्तर दिशा में राजा ने खुदाई कराई, जहां दस फुट नीचे वन दुर्गा की प्रतिमा मिली और वहीं मंदिर की स्थापना की गई।




चैत्र और अश्वनी महीने में आयोजित होता हैं मेला!

वही मां को प्रसन्न करने के लिए सप्ताह में दो दिन सोमवार और शुक्रवार पूजा-अर्चना के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं, इन दिनों अन्य दिनों की तुलना में भक्त बड़ी संख्या में जुटते हैं और मां की पूजा करते हैं विशेष मेला वर्ष में दो बार "चैत्र" (मार्च) और "अश्विन" (अक्टूबर) के महीने में "नवरात्र" के महान अवसर पर आयोजित किया जाता है


थावे धाम का फेमस है मीठी पेडुकिया!

वही आपको बताते चले की अगर आप थावे धाम जाए तो यहां के मुख्य मिठाइयों में एक मीठी पेनुकिया का आनंद जरूर ले क्यों की यहां आने वाले हर तीर्थार्थी इस मीठी पेंडुकिया का आनंद लेते है।